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महात्मा गांधी के एक मात्र वचनसे जयाबहन शाह के जीवनमें परिवर्तन आया  ।  पु. बापूने स्वराज आंदोलनमें कहा शिक्षित बहेने राष्ट्रके स्वयं सेविका बनेतबसे जयाबहन एक रचनात्मक, सर्वोदयी कार्यकर का जीवन व्यतीत किया और कर रहे है ।  

श्री जयाबहन शाह का जन्म दिनांक : ०१-१०-१९२२ मे हुआ ।  बचपन से ही वह तेजस्वी रहे है ।  उसके समय में महद बहने ही उच्च शिक्षण प्राप्त करती, उस वक्त सं. १९४५ में राज्य शास्त्र और अर्थशास्त्र के विषयों के साथ M.A.  में उतीर्ण हुए ।

विद्यार्थी अवस्था में ही देशकी आजादीके यग्नकर्म में अपने आपको समर्पित किया था ।  शरूमें राष्ट्रभाषा प्रचार और कुछ रचनात्मक कार्य करते करते श्री वजुभाई शाह से परिचय हुआ ।  परिचय आगे जाके लग्न में परिवर्तीत होके जीवनसाथी हुए ।  तबसे श्री जयाबहन और स्व । वजुभाई शाह रचनात्मक कार्य, समाजसेवा के कार्य और राजनीति गतिविधियों में सहप्रस्थान कर सर्वोदयी समाज के लीए अमूल्य योगदान दिया ।

श्री जयाबहन शाहने अपने स्वयंसेविका की शरुआत राष्ट्रभाषा प्रचार, खादीकारी और हरिजन सेवा से की ।  सं. १९९८ में द्वारका में शिविर लगाकर भगवान द्वारकाधीश और बेटके प्रसिद्ध मंदिर के दर्शन के लिए प्रवेश करवाया ।  इतनाही नहीं उस वक्त हरिजन निर्वासित के पुनर्वसवाट विकट जवाबदारी ली और गांधी शताब्दी अवसर पर भंगी कष्ट मुक्ति के कार्यक्रम अंतर्गत गंधिजीके प्रियकार्य में बाबर गांव को सम्पूर्ण भंगी कष्ट मुक्ति  में अपना अमूल्य योगदान दिया था ।  खुद शिक्षण और समस् कल्याण खाते में मंत्री थे तब हरिजनों को न्याय दिलाने उसके साथ खड़े रहे ।  निर्भयतासे समाज में महिला और दलितोको होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले जयाबहन अनेकोके आदर्श बने थे ।  महिलाए और बच्चो के कल्याण के लीए अनेक संस्थाओ से जुड़े रहे है ।

१९५७ से १९८० दरम्यान गुजरात राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्डके अध्यक्षपद पर रहकर दलित विस्तारोमे खादिकाम से लोगो को आजीविका देकर स्वावलंबी बनानेका काम किया ।  खादी ग्रामोद्योग की शिरमोर एसी सौराष्ट्र रचनात्मक समिति के वह स्थापक है, और अब वह अध्यक्ष स्थानस से दलित विस्तारो में जनसेवा का अमूल्य कार्य करा रहे है ।

१९८० से गुजरात नशाबंदी मंडलके अध्याक्ष स्थान पर रहकर नशाबंदीकी नीति और कार्यक्रमों के अमलीकरण से समाज को व्यसनमुक्त बनाने का कार्य किया है ।  राजकोट में कुदरती उपचार केन्द्र द्वारा अनेक लोगोंको पिडामुक्त किया है ।  हाल में वह सौराष्ट्र हिंदी प्रचार समितिके स्थापक ऊपरांत प्रमुक पद पर सेवा दे रहे है ।

श्री जयाबहन १९४९मे सौराष्ट्र बंधारण सभा के सभ्यपद पर रहे ।  १९५२मे मांगरोल मत विस्तारसे  सौराष्ट्र विधानसभा मे जीत कर प्राथमिक शालाए शरू करवाई और निरक्षर को साक्षर बनाने का काम किया और १९८५७ से १९७० तक लोकसभा में  सभ्य रहकर गाँव के लोगो और महिलाओ को जुबान दी ।  और १९६२में वल्ड हेल्थ कोन्फरंसमें भी भाग लिया था ।

शिक्षणक्षेत्र में भी उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लोकभारती संस्थाके सक्रिय ट्रस्टी रह कर सौराष्ट्रमें बुनियादी तालीम द्वारा ग्राम नेतृत्व खड़ा किया ।  सौराष्ट्र के स्वातंत्र सैनिको और लड़तो पुस्तकका संपादन कीया ।  हाल स्वराज धर्म मुखपत्र के संपादन के जवाबदारी उठाकर जागृति लाने का काम कीया है ।  

और इग्लेण्ड, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्वीत्ज़र्लेंद, होलेंड, लेबनोन, इजिप्त, केन्या, युगांडा और अमेरिका जेसे देशो का प्रवास करके अपने अनुभवों का लाभ पुरे समाज को दिया है ।

श्री जयाबहनने गांधी दिखाए मार्ग पर यथाशक्ति समाज के विविध क्षेत्र में अनेक सेवाकार्य करके गुजरात की यशस्वी महिलाओ में स्थान प्राप्त किया है ।